जालौन । पिछले 10 सालों में भारत में पोकर का माहौल उन गलतफहमियों को दूर कर रहा है, जो इस खेल से जुड़ी हैं। इनमें से एक गलतफहमी यह है कि पोकर केवल अमीर लोगों का खेल है, लेकिन देश के पोकर खिलाड़ी लगातार इस धारणा को चुनौती दे रहे हैं। जो प्लेलयर्स कुशल होते हैं, रणनीति को समझते हैं और पोकर में अपनी जानकारी बढ़ाने की कोशिश करते हैं, वह बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे हैं, और रामू कुशवाहा की कहानी भी ऐसी ही है। पोकर की दुनिया में आने से पहले रामू एक रोडसाइड फूड वेंडर थे, लेकिन अब उन्होंरने पोकरबाज़ी और जियो सिनेमास के निर्णायक गेम शो पोकर मास्टेरक्लाडस में जलवा बिखेरा है।
रामू कुशवाहा की उम्र 29 साल है और वह उत्तार प्रदेश के जालौन में रहते हैं। कोविड-19 से पहले वह एक छोटी-सी फूड लॉरी चलाते थे और बर्गर-पिज्ज़ाे बनाते थे। लेकिन लॉकडाउन लगने के बाद उनके लिये अपने परिवार का गुजारा करना मुश्किल हो गया। तब उन्होंइने ऐसे ऑनलाइन खेलों की खोज शुरू की, जो ईनाम में पैसे देते हैं और फिर उन्हेंन पोकर का पता चला। उन्होंोने पोकर को जानना शुरू किया और शुरूआत में छोटे दांव वाले गेम खेले। खेल को समझने के बाद उन्हों ने पोकरबाज़ी की नेशनल पोकर सीरीज में भाग लिया और गोल्ड मेडल जीता। इस उपलब्धि से उन्हें लगातार टूर्नामेंट खेलने और पोकर को एक पेशे के रूप में अपनाने का हौसला मिला। यह एक रियलिटी टीवी शो है जो गेम शो की तरह है, और इसे पोकरबाज़ी द्वारा प्रस्तुत किया गया है। इस शो का प्रसारण जियो सिनेमा पर किया जाता है।
अपना अनुभव बताते हुए, रामू ने कहा, ‘‘यह वाकई एक बहुत ही रोमांचक अनुभव था। हमारा चुनाव (सेलेक्शबन) नीलामी के जरिए हुआ था, जैसे बड़ी क्रिकेट लीगों में होता है। मुझे पोकरबाज़ी के ‘नाइट ऑफ ग्लो री’ इवेंट में पोकर के प्ले यर्स से मिलने का मौका मिला था, लेकिन कोई सार्थक बातचीत नहीं हुई और मैंने पोकर प्लेटयर्स को खेलते भी नहीं देखा। मेरे मेंटर विनोद मेगलमनी भी बड़े मददगार थे। उदाहरण के लिये, मैं अंग्रेजी नहीं बोल पाता हूँ और वह भी हिन्दीा में उतने अच्छेग नहीं हैं। लेकिन ट्रेनिंग सेशंस के दौरान उन्हों ने मेरी आसानी के लिये हिन्दीह में बात की। मेरी टीम के लोगों की दोस्तील और व्यांवहारिक प्रशिक्षण से मुझे बेहतर रणनीतियों को समझने और अपने हुनर को निखारने की ताकत मिली।’’
रामू की टीम को जाने-माने पोकर मेंटर विनोद मेगलमनी लीड कर रहे थे और रामू का कहना है कि उनके पोकर कॅरियर में यह मायने रखने वाला मोड़ है।
रामू आमतौर पर शाम को 7 बजे खेलना शुरू करते हैं। इंडियन पोकर मास्ट र्स जैसे महत्वनपूर्ण टूर्नामेंट्स के दौरान वह अपने सेशन और भी पहले से शुरू कर देते हैं। शुरूआत में उनका परिवार पोकर के फैसले पर सहमत नहीं था, लेकिन उन्हें मेडल जीतता देखने और सीरीज के लिये गोवा जाने पर उनके परिवार को लगा कि पोकर सचमुच स्किल्सन का खेल है। रामू इसका श्रेय पोकरबाज़ी को देते हैं।