संविधान सभा के अध्यक्ष वी महार जाति के भीमराव अंबेडकर थे जिनकी छाया से भी लोग बचते थे स्कूल में प्रवेश तो दूर की बात है मिसाइल मैन व पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम एक मछुआरे के बेटे थे लेकिन देश के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचे आशा यह है की प्रतिभा पर किसी धर्म विशेष व संस्थान की बपौती नहीं होती वह कहीं भी निखर सकती है। अभिभावको कुछ समझ नहीं आता वह समझते हैं उनका नाम निहाल तभी होनहार बनेगा जब वह मिशनरी वह कान्वेंट स्कूल में पड़ेगा अपनी इसी छह के लिए अपने नौनिहालों पर अपनी चाय के मुताबिक अत्याचार करते हैं भर में बिस्तर से उठाकर दर्जनों किलोमीटर दूर कान्वेंट स्कूल में भेज देते हैं। बच्चों के बचपन के कई कई घंटे स्कूल के आवागमन में ही बर्बाद हो जाते हैं। इसके पीछे उनकी इच्छा यह है कि कान्वेंट स्कूल में ही पढ़कर उनका नौनिहाल होनहार बनेगा वैसे इसकी दूसरी वजह यह है कि अभिभावकों को अपने बच्चों का बड़े स्कूल में दाखिला होना एक बड़ा स्टेटस सिंबल बन गया है जिसके लिए वह हर मां हजार रुपए खर्च कर रहे हैं बच्चों के रंग रोगन व पाठ सामग्री के अलावा बाजार का रुख देखकर बाजार संस्थान इनका खूब बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं बच्चों को आधुनिक नई पश्चिमी तकनीक के नाम पर। खास बात यह है कि बच्चों पर हो रहे इस अत्याचार पर ना कोई बच्चों का हितैषी संस्थान बोलता है और ना कोई शिक्षक विशेषज्ञ अभिभावक तो स्टेटस सिंबल की भीड़ में जुटे हुए हैं?